History of Indian Flag | भारतीय तिरंगे का इतिहास ( संपूर्ण जानकारी एक लेख में )

History of Indian Flag | भारतीय तिरंगे का इतिहास ( संपूर्ण जानकारी एक लेख में )

हमारे देश की आन बान और शान है हमारा प्यारा सा तिरंगा |

क्या आपने कभी सोचा हैं जिस तिरंगे को हम इतना प्यार करते हैं आखिर इस तिरंगे को कब और किसने बनाया। ?

दुनिया के हर आजाद देश का अपना एक झंडा होता है। यह एक आजाद देश का प्रतीक है। 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की आजादी के कुछ दिन पहले 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक जिसकी अगुवाई महात्मा गाँधी की कर रहे थे उस सभा के दौरान भारत के राष्ट्रीय ध्वज को उसके वर्तमान स्वरूप में अपनाया गया था।

तो दोस्तों हम सुरुवात करते हैं सं १८५७ जब हमारे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पहले क्रांतिकारी मंगल पांडे जी ने 'मारो फिरंगी को' नारा दिया

तो दोस्तों सन १८५७ मंगल पांडेय द्वारा किया गया विद्रोह के कारण अंग्रेजों को डर था कि मंगल पांडे ने विद्रोह की जो चिंगारी जलाई है वह देशभर में कहीं ज्वाला न बन जाए। इस लिए अंग्रेजो के द्वारा निर्णय लिया गया की भारत के लिए एक अलग झंडा होगा।  

Indian Flag in British Empire
Indian Flag in British Empire

जो दिखने मैं बिलकुल ब्रिटिश फ्लैग जैसा ही था।  पर हम हिन्दुस्तानियो के द्वारा उस ब्रिटिश झंडे को अस्वीकार कर दिया गया। और साल 1857 में पहली बार हिंदुस्तान में आजादी की संगठित लड़ाई लड़ी गई। सैनिकों की तरफ से हुए इस विद्रोह को अंग्रेजों ने बेरहमी से कुचल दिया था।

भारत के इस प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान जो झंडा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में इस्तेमाल किया गया था, वह कुछ ऐसा दिखता था। इसमें हरे रंग की पृष्ठभूमि में एक चांद और कमल का फूल बना हुआ था। बताया जाता है कि इसे बहादुर शाह जफर ने फहराया था।

indian flag bahadur shah zafar
indian flag bahadur shah zafar

परन्तु इसके बाद भी यह झंडा चर्चा में नहीं रहा। अब नयी दिकत ये थी की हर राज्य , हर संघ, हर एक स्वतंतता सेनानी का अपना एक झंडा होता था।  

इन बातो को ध्यान में रख कर साल 1904 से 1906 के बीच स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने एक ध्वज तैयार किया था। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला राष्ट्रीय ध्वज कहा जाता है। बाद में इसे सिस्टर निवेदिता के ध्वज के नाम से भी जाना जाने लगा था। इस झंडे में पीला और लाल दो रंग थे। लाल का मतलब स्वतंत्रता के लिए संघर्ष से था। वहीं पीला विजय का प्रतीक था। ध्वज पर बांग्ला में 'बोंदे मातोरम' लिखा था। इसमें एक वज्र भी बना था, जो इंद्र का अस्त्र माना जाता है। यह देश की शक्ति का प्रतीक था। बीच में एक कमल भी बना था, जिसे शुद्धता का प्रतीक बताया गया।

सिस्टर निवेदिता के झंडे के बाद साल 1906 में एक और राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया। इसमें तीन पट्टियां थीं, जिसके रंग क्रमशः नीला (शीर्ष पर), पीला (मध्य में) और लाल (नीचे) थे। सबसे ऊपर की पट्टी पर कमल के फूल बने थे। मध्य में देवनागरी में वंदे मातरम लिखा था और नीचे वाली पट्टी पर चांद और सूर्य बने थे। 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक कोलकाता में इसे फहराया गया था।

जैसा की मैंने आपको बताया था की उस समय दिक्कत ये थी की झंडा एक समूह का होने के कारन कई लोगो ने अपने अपने झड़े को राष्ट्रीय झंडा घोसित करवाना चाहा।

ऐसा ही एक नाम है भीकाजी कामा का

साल 1907 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में भीकाजी कामा ने कुछ निर्वासित क्रांतिकारियों के साथ यह ध्वज फहराया था। यह कलकत्ता फ्लैग जैसा ही दिखता था। बस सबसे ऊपर वाली पट्टी में कमल की जगह सात सितारे लगा दिए गए थे, जो सप्तर्षियों का संकेत करते थे। बर्लिन के सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में भी इसे फहराया गया था, इसलिए इसे बर्लिम कमिटी फ्लैग भी कहा जाता है।

इन सब के बावजूद देश मैं एक झंडे की राय पर सहमति नहीं हुए और सन १९१६ में  गाँधी जी के करीबी लेखक और जियोफिजिसिस्ट पिंगलि वेंकैया गांधी जी से मिले और उन्हें एक ध्वज दिखाते हुए उसे अप्रूव करने को कहा। यह ध्वज खादी के कपड़े पर बना था, जिसमें तीन रंग की पट्टियां थीं और बीच में चरखा बना हुआ था। चरखा भारत के आर्थिक उन्नयन का प्रतीक था। इसमें दो हरा और केसरियां रंग की पट्टियां थीं। गांधी जी ने इस झंडे को मंजूरी देने से इनकार कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि हरा रंग मुस्लिम और केसरिया हिंदू धर्म से संबंधित है। ऐसे में इस झंडे में देश के बाकी धर्मों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता।

अब बारी थी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जिन्होंने होमरूल लीग के साल 1917 में बनाए इस राष्ट्रीय ध्वज को फहराया था। उस समय में भारत को एक डोमिनियन स्टेट बनाने की मांग की जा रही थी। इस झंडे में ऊपर अंग्रेजों का ध्वज यूनियन जैक बना हुआ था। बाकी के झंडे में 5 लाल और चार हरे रंग की पट्टियां थीं। इनमें सात सितारे भी लगे थे, जो सप्तर्षियों के प्रतीक बताए गए। इसके एक कोने पर चांद-तारा भी बना हुआ था। यह झंडा लोगों में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ।

सन १९२१ ​में विजयवाड़ा में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस दौरान आंध्र के एक युवा ने एक झंडा तैयार किया और गांधीजी के पास लेकर गया। इस झंडे में दो रंग थे। दोनों रंग दो समुदायों हिंदू और मुस्लिम को रिप्रेजेंट करते थे। इस पर गांधीजी ने सुझाव दिया कि भारत के बाकी समुदायों की प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें सफेद रंग की पट्टी भी जोड़ दिया जाए। साथ ही राष्ट्र की प्रगति को दर्शाने के लिए एक चरखा भी लगा दिया जाए। बताते हैं कि यह झंडा आयरलैंड के झंडे से प्रेरित था, जो उस समय ब्रिटेन से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। हालांकि, कांग्रेस ने इस झंडे को मान्यता नहीं दी लेकिन यह भारत की आजादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में गिना जाता है।

विजयवाड़ा के झंडे से बहुत से लोग नाखुश थे। ऐसे में पिंगलि वेंकैया ने तीन रंगो का इस्तेमाल कर एक नया ध्वज तैयार किया, जिसमें केसरिया, हरा और सफेद रंग थे। बीच में चरखा बना हुआ था। 1931 में कांग्रेस ने इस ध्वज को मान्यता दी और इसे कमिटी के आधिकारिक ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया। साल 1931 भारतीय ध्वजों के इतिहास में एक उल्लेखनीय वर्ष के रूप में दर्ज है। इस ध्वज को सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिंद फौज ने भी अपनाया था।

सदियों के संघर्ष के बाद वह दिन भी आने वाला था, जब भारत को अंग्रेजों से पूरी तरह आजादी मिलने वाली थी। इस बीच 22 जुलाई 1947 को राजेंद्र प्रसाद की अगुआई में गठित कमिटी ने स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज को मान्यता दी। इस झंडे में तीन रंग केसरिया, हरा और सफेद बरकरार रखे गए थे। चरखे की जगह पर सम्राट अशोक के धर्मचक्र को रिप्लेस कर दिया गया था। इस तरह से स्वतंत्र भारत को उसका राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मिल गया था।

ध्वज का डिज़ाइन क्षैतिज तिरंगा है जिसमें गहरा केसरिया सबसे ऊपर, बीच में सफ़ेद और गहरे हरे रंग में समान अनुपात में है। अशोक चक्र, एक 24-स्पोक व्हील, सफेद बैंड के केंद्र में गहरे नीले रंग में दिखाई देता है। अशोक चक्र कानून के शाश्वत चक्र और न्याय की खोज का प्रतिनिधित्व करता है।

केसरिया रंग त्याग और त्याग का प्रतिनिधित्व करता है। सफेद रंग शांति और सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है। हरा रंग विकास, उर्वरता और उज्ज्वल भविष्य की शुभता का प्रतिनिधित्व करता है।

26 जनवरी 2002 को, भारतीय ध्वज कोड को संशोधित किया गया था और स्वतंत्रता के कई वर्षों के बाद, भारत के नागरिकों को अंततः किसी भी दिन अपने घरों, कार्यालयों और कारखानों पर भारतीय ध्वज फहराने की अनुमति दी गई थी, न कि केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, जैसा कि पहले मामला था। . अब भारतीय कहीं भी और कभी भी राष्ट्रीय ध्वज को गर्व से प्रदर्शित कर सकते हैं, जब तक कि तिरंगे के किसी भी अनादर से बचने के लिए फ्लैग कोड के प्रावधानों का सख्ती से पालन किया जाता है। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में विभाजित किया गया है। संहिता के भाग I में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण शामिल है। संहिता का भाग II सार्वजनिक, निजी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के लिए समर्पित है। संहिता का भाग III केंद्र और राज्य सरकारों और उनके संगठनों और एजेंसियों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन से संबंधित है।

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